ज़िंदगी से जाने का कोई वजह भी न दी उसने कैसे देता उसने तो मेरे साथ कितने सपने सजाये थे सायद हालात ही ऐसे थे की जाने के लिए बहाना बनाना पड़ा वक्त के साथ अपने हाथों से मेरा हाथ को छुड़ाना पड़ा मुझसे बिछड़ना वो भी नहीं चाहता था मेरे लिए मेरी ही नजरो मे खुद को गिरा कर मुझे रुलाकर मुझसे नजरे चुरा कर मेरे रास्तो से उसे कतराना पड़ा उसकी यादे इन आखों मे सजी हैं आज भी ये दुनिया उसी मे बसी हैं आए ज़िंदगी तु कहाँ खो गई हैं ©manshisingh@gmail.com teri yaade🩷🩵🩶