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मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है! सही गलत को अब समझन

मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है!

सही गलत को अब समझना नही है
मुझे सुकुन और  दुःख के परे जाना है
राहत और मंजिल को यही छोड देना  है
अब नसीब और किस्मत को लाँघ देना है
जीत और हार को मात देना है

स्त्री और पुरुष  कि मतभेद कि सीमाओ को पार कर देना है
संस्कार और रहन सहन को अब समझाना है
कि मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है

समाज और न्याय के बीच मुझे नही फंसना है
जीवन और संघर्ष को जरा थंब सा देना है
अकेले हु या कोई साथ है इन सब से मुझे फर्क नही पडता
अब एक ही चाहत है मेरी  इस जमाने से
मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है..

इंसान हु या पत्थर तिलतिल तडपते दर्दो को आराम देना है
खुद मे राहत सी महसुस करना है
क्या फर्क पडता है इंसान हुं या कोई और जीव निर्जीव
इन सब से मुझे कहना है मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है 

नही जानती मे कौन हुं!
बस इतना पता है कि बेवजह नही हुं में
अब बस बोझ सा लगता है मुझे ए दुनिया भर  कि सीमाए
को अपनाना एक जान से सच मे पत्थर बन ग्ई है जिंदगी
होले ही सही अब सुकुन मे कम दर्द मे ही लगती है जिंदगी 
दुनिया के कौन से कोने से टकराऊ मे

मुझे मेरी आजादी को महसुस कर जीना है
आजादी  किसे कहते है ए जमाने को दिखाना है
घुटन कि सांसो को बुंद कि तरह आजाद  कर देना है 
मुझे खुद कि कमी को भी संवारना है लिपटना है उन लहरों से 
जहा मुझे सुकुन सा महसुस हो सके,,

ए मै तु कि बहस मे नही पडना अब
मुझे  बुंद कि तरह आजाद बनना है.....
मुझे आजाद कर दो इस मतभेद के पिंजरे से 
जो समाज और दुनिया ने सोचे समझे इंसानो पर लगाए है

©SUREKHA THORAT #मुझे बुंद कि तरह आझाद बनना है!
#together
मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है!

सही गलत को अब समझना नही है
मुझे सुकुन और  दुःख के परे जाना है
राहत और मंजिल को यही छोड देना  है
अब नसीब और किस्मत को लाँघ देना है
जीत और हार को मात देना है

स्त्री और पुरुष  कि मतभेद कि सीमाओ को पार कर देना है
संस्कार और रहन सहन को अब समझाना है
कि मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है

समाज और न्याय के बीच मुझे नही फंसना है
जीवन और संघर्ष को जरा थंब सा देना है
अकेले हु या कोई साथ है इन सब से मुझे फर्क नही पडता
अब एक ही चाहत है मेरी  इस जमाने से
मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है..

इंसान हु या पत्थर तिलतिल तडपते दर्दो को आराम देना है
खुद मे राहत सी महसुस करना है
क्या फर्क पडता है इंसान हुं या कोई और जीव निर्जीव
इन सब से मुझे कहना है मुझे बुंद कि तरह आजाद बनना है 

नही जानती मे कौन हुं!
बस इतना पता है कि बेवजह नही हुं में
अब बस बोझ सा लगता है मुझे ए दुनिया भर  कि सीमाए
को अपनाना एक जान से सच मे पत्थर बन ग्ई है जिंदगी
होले ही सही अब सुकुन मे कम दर्द मे ही लगती है जिंदगी 
दुनिया के कौन से कोने से टकराऊ मे

मुझे मेरी आजादी को महसुस कर जीना है
आजादी  किसे कहते है ए जमाने को दिखाना है
घुटन कि सांसो को बुंद कि तरह आजाद  कर देना है 
मुझे खुद कि कमी को भी संवारना है लिपटना है उन लहरों से 
जहा मुझे सुकुन सा महसुस हो सके,,

ए मै तु कि बहस मे नही पडना अब
मुझे  बुंद कि तरह आजाद बनना है.....
मुझे आजाद कर दो इस मतभेद के पिंजरे से 
जो समाज और दुनिया ने सोचे समझे इंसानो पर लगाए है

©SUREKHA THORAT #मुझे बुंद कि तरह आझाद बनना है!
#together