#OpenPoetry वो फुर्सतो का इतवार सा और , मै उसके इंतजार में निकलता शनिवार की रात सा, वो महकती इत्र की खुशबू, तो मै उसमे घुलने को बेक़रार सा, वो दरिया थी तो , मै उसमे डूबने को तैयार सा, वो इश्क थी तो मै भी, आशिकी को बेताब सा। ©krishna jangir #OpenPoetry