दे तसल्ली कोई... कोई जाता हैयहाँ से न कोई आता है, ये दीया अपने ही अँधेरे में घुट जाता सब समझते हैं वही रात की किस्मत होगा, जो सितारा बुलंदी पर नजर आता है। मैं इसी खोज में बढ़ता चला जाता हूँ, किसका आँचल है जो पर्बतों पर लहराता है। मेरी आँखों में एक बादल का टुकड़ा शायद,कोई मौसम हो सरे-शाम बरस जाता है। दे तसल्ली कोई तो आँख छलक उठती है, कोई समझाए तो दिल और भी भर आता है sansm Jo tashali de,,,,,