मैं घर-आँगन बसाना चाहता हूँ, उसे दुल्हन बनाना चाहता हूँ; मुझे भी प्यार उससे हो गया है, मैं ये उसको बताना चाहता हूँ; तेरी आंखें है जानू झील जैसी, मैं इन में डूब जाना चाहता हूँ; दिखा दो आज सारे रूप अपने, मैं आंखों में बसाना चाहता हूँ; बहुत नज़दीक जा के उसके यूहीं, मैं उससे रूठ जाना चाहता हूँ; बना कर हमसफ़र मैं उसको अपना, क्षितिज के पार जाना चाहता हूँ; मैं उसकी हसरतों का ख़ून करके, उसी ख़ून से नहाना चाहता हूँ; कभी गाया था हमने साथ मिलकर, वही नग़मा पुराना चाहता हूँ; मजलिस में जब बैठी हो मेरी शहजादी, कोई नग़मा सुनाना चाहता हूँ; मैं घर-आँगन बसाना चाहता हूँ, उसे दुल्हन बनाना चाहता हूँ।। ©subhashroythought #thirtyseventhquotesofmine #dulhaniya #mahfil_e_ishq #Jindagi