हूँ रूबरू कितने नन्हें किस्सों से हूँ मिल जाती कभी अपने ही हिस्सों से हूँ दोहराती जैसे अपने ही नग़मों को अनलिखे अनकहे हर लफ्जों को... हूँ सफर में व्यस्त हर पहर में हूँ गिरती सम्भलती हर लहर में हूँ रहती आज़ाद मग़र कैद में अपने ही आसमां में बेचैन मैं।। ©Richa हूँ रूबरू कितने नन्हें #किस्सों से हूँ मिल जाती कभी अपने ही हिस्सों से हूँ दोहराती जैसे अपने ही नग़मों को #अनलिखे अनकहे हर लफ्जों को... हूँ सफर में व्यस्त हर पहर में हूँ गिरती सम्भलती हर लहर में