भोर का मैँ गीत गाऊँ।। भोर का मैं गीत गाऊँ, अम्बर धरा मैं प्रीत गाऊँ। सींच कर मन के चमन को, हो उदित मैं जीत गाऊँ। तम का जो अवसान है, किरणों का मंगल गान है। आया नया जो बिहान है। मैं ये जग की रीत गाऊँ। मैं प्राण जीवन मे भरूँ, मैं इष्ट का पूजन करूँ, मैं संकलित आगे बढूं, मैं तोड़ तम की भीत जाउँ। जन मुदित ये प्रण मुदित, कर्म उदित ये मर्म उदित, आव गुणित ये भाव गुणित, पत्र संचित बून्द शीत गाऊँ। निर्बाध मैं निःस्वास गाऊँ, मैं सुबह और आस गाऊँ, मैं क्रीड़ा और रास गाऊँ, सखी सखा और मीत गाऊँ। वृहद और विहंगम मैं गाऊँ, एक मिलन संगम मैं गाऊँ, आज नत और नम मैं गाऊँ। छाली मथ मैं घृत गाऊँ। हो सजग सजल मैं गाऊँ, गीत ये अविरल मैं गाऊँ, बल और सम्बल मैं गाऊँ, आज निश्चल पुनीत गाऊँ। मैं धरा अम्बर मैं गाऊँ, समस्त नारी नर मैं गाऊँ, गगन उड़ता पर मैं गाऊँ, अभिषेक और किरीट गाऊँ। ©रजनीश "स्वछंद" भोर का मैँ गीत गाऊँ।। भोर का मैं गीत गाऊँ, अम्बर धरा मैं प्रीत गाऊँ। सींच कर मन के चमन को, हो उदित मैं जीत गाऊँ। तम का जो अवसान है,