और कई दिन ये उदासी मैं ढो नहीं सकती किसी की भी बाहों में तो रो नहीं सकती फ़ैसला था जो मेरा वो तो मेरा था ना अपनी ही जैसी मैं क्यों हो नहीं सकती बुझी है शमा और अंधेरा भी घना हैं चराग़ों में भी लौ कोई पिरो नहीं सकती कल चहचहाती हुई फिरती थीं जो लड़की आज खुलकर वो हंस क्यों नहीं सकती आया एक झोंका ओर छीन गया सब कुछ खुशी क़ल्ब शरारत चैन से सो नहीं सकती ©Ana #tumaurmain #kashmakash #zidagi #Trending #Reet