ये इबादत भी क्या इबादत है हुज़ूर सज़दा उनको देख कर करते हैं ज़रूर सज़दे में सर झुकता है उनका पुरज़ोर नज़रों में शिकायत भी होती है ज़रूर भाषाओं की खूबसूरती उसे आत्मसात करनेवाले निर्धारित करते हैं और फिर हमारे देश की विविधता का अभिन्न हिस्सा हैं यहाँ की अनगिनत भाषाएँ व आँचलिक बोलियां। हिन्दी प्रमुख भाषाओं में से एक है जो कहीं न कहीं हमें एक सूत्र में पिरोने का कार्य करती है चाहे वो संगीत का माध्यम हो या शायरी का और इसी कड़ी में हम आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं #dnd_शामएनज़्म जहाँ आप अपनी अभिव्यक्ति को एक आयाम दे सकते हैं और आपके साथ हमें भी नवीन रचनाओं को एक जगह पढ़ने का सुलभ अवसर प्राप्त होगा। हमारी नई पहल में आज आपको उपर्युक्त शब्द "इबादत" का प्रयोग करते हुए शायरी/गज़ल/नज़्म/शेर या आपकी इच्छा की किसी भी विधा पर रचना पूरी करनी है। शब्द सीमा की कोई पाबंदी नहीं है। उम्मीद करते हैं आपको ये पहल पसंद आई हो। आपके बहुमूल्य सुझाव आमंत्रित हैं।