ना दुनियादारी से मतलब था ना ही जिम्मेदारियों का बोझ था अपनी धुन के दीवानों ने गांव की हर गली मोहल्ले को अपने शोर से खिलखिला दिया था दिखावटी जिंदगी के ना वो आदी थे ना ही कपड़ों के पहनावे के वे शौकीन थे हाथ लगे हर कपड़े को पहन मां के हाथों कंघी करवा कर निकल पड़ते थे अपनी जिंदगी को पुकारने ऐसे थे हम सारे अपने बचपन के सुनहरे से दिनों में ©kirtesh #childhood #nojoto #poem