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जिन आँखों में बंजर दुनिया। उनकी खातिर पत्थर दुनिय

जिन आँखों में बंजर दुनिया। 
उनकी खातिर पत्थर दुनिया।।

बैठे सौ सम्वाद अकेले, घूर रहे सागर के जल को। 
तूफानों के शब्द हृदय में, देख रहे लहरों के छल को। 
मोती  जाने कहाँ छुपा हो, निकले जिसमें सुन्दर दुनिया।।

प्रश्न अकेले पड़े वहाँ पर, जहाँ कुतर्कों का रेला था। 
उत्तर भी हो गये निरुत्तर, खेल कुमति ने यों खेला था।
अंदर-अंदर व्याकुलता है, अपनी धुन में बाहर दुनिया।।

निष्ठुरता के निर्जन वन में, कौन हृदय की पीड़ा समझे। 
ढोलों की धमकी के आगे, क्या होती है वीणा समझे। 
कटु सच है पर भोले मन को, दे देती है ठोकर दुनिया।।

भले नहीं है आज द्रोपदी, किन्तु पुनः संवेग दाँव पर ।
जलती-तपती धूप अड़ी है, अपना दावा लिये छाँव पर ।
कैसे आज दिखाऊँ सबको, कैसी मेरे अंदर दुनिया।।

©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
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