जो शर्म को अपने टूटे हुए मकान पर छोड़ कर आता है,, दो वक्त की रोटी के लिए ईंट और पत्थरों से भी टकराता है यहां मजबूरी स्त्री और पुरुष में भेद नहीं करती,, और एक बच्चा भी यहां मजदूर कहलाता है,,, कैसे कहूं मजदूर दिवस की शुभकामनाएं,,🙏 ©पूर्वार्थ #कैसे कहे मजदूर दिवस की शुभकामना