मंदिर के बाहर बैठे थे ना जाने कितने दिनों से भूखे वो और हम तुझे छप्पन भोग चढ़ा रहे थे, सुन ना ख़ुदा हम फिर भी खुद को इंसान बता रहे थे.. ठंड से ना जाने कितनो की जान निकल रही थी और हम मजार पर चादर चढ़ा रहे थे, सुन ना ख़ुदा हम फिर भी खुद को इंसान बता रहे थे.. Thanks to unknown alfaz for poking me...#insaniyat #wepeople #ourthinking #yqbaba #yqbesthindiquotes #shalinisahu