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््शीर्षक ्् ््मै ना किसी कीशौहरत हूं ्् ््रचनादिना

््शीर्षक ््
््मै ना किसी कीशौहरत हूं ््
््रचनादिनांक 8,,,06,,1996
समय रात्रि,,11,,10,,
््
मै ना किसी की शौहरत हूं।
और ना किसी का जनाजा हूं।
मै तो एक मूलजिम हूं।
किसी की ताउम्र इबादत का,
बस ख्यालो में देखता हूं
मै तेरी गुजारिशो का वो आयना
बस अल्फाज़ नहीं मिलते।
मेरे इस हलख
मै तो आयना हूं,
जिसका मुझे शिद्दत से रहा।
मुझे तेरा इंतज़ार,
मै तो तेरी चाहत का,वो नूर है।
वक्त के साये में मै तुझे,
तख्त और ताज नमाजू तूझे।
मगर बदकिस्मती के साये में चले।
तो घर की चौखट से भी,
बेदखल कर दूं तुझे।
क्यौ झपटता है क्यो लपकता है।
मेरी सियासती चालो पे
बेमोत खूदखूशी हों जाती है।

किसी सियासती मौहरे की।
्््््
कवि शैलेंद्र आनंद
् 15 जून 2023






द में।

©Shailendra Anand
  #EarthDay