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जब ख़्वाब-ओ-ख्याल की ,तितलियाँ मचलती हैं, झाँकती ह

 जब ख़्वाब-ओ-ख्याल की ,तितलियाँ मचलती हैं,
झाँकती है माज़ी में ,हर एक गली से निकलती है,

कैसा मिज़ाज़ लेकर आता है ,ये यादों का मौसम,
कभी छलकती सी आँखे है ,कभी छेड़ता सरगम,

अनगिनत क़िस्से आँखों से , यूँ  बरसने  लगते हैं,
कुछ लम्हों को तो जीने को,अरमां तरसने लगते हैं,

अश्क़ों की झड़ियाँ,  कभी ख़ुशी  की फुलझड़ियां,
यादों से गुज़र   जाती   हैं , वो  अनगिनत घड़ियाँ,

कभी तपते  रेगिस्तान   में , नंगे  पाँव  चलाता  हैं,
कभी  रिमझिम   फुहार   से , तन मन भिगाता हैं,

हौले  से  छू  जाता  है , दिल  में दबे जज़्बातों को,
ग़मगीन बना जाता है ,उन प्रेम भरी मुलाकातों को,

ये यादों का मौसम भी ,क्या क्या रँग दिखा जाता है,
दिल मे दबी हुई चिंगारी को,फ़िर से भड़का जाता है।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
  #यादोंकामौसम