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फिर भी क्यों हैं जिंदगी बेरंग? संजोए थे हमने सपने

फिर भी क्यों हैं जिंदगी बेरंग?
संजोए थे हमने सपने सतरंग
क्यों खुद की खुद से होने लगी हर-पल एक जंग।
हमनें भी ज़िंदगी में भरे थे
एक - एक करके सब रंग ।
फिर क्यों हो गई हमारी ज़िन्दगी
बेगानी और बेरंग।
डगमगाते हुए डगर पर हमने
सीख लिया था संभलकर चलना।
सहसा काल ने दिखाया अपना ऐसा स्वरूप
जैसे लगा खुदा ने किसी बच्चे से
छीन लिया हो उसका पालना।
मैं स्वयं संभलू या उन्हें संभालू
सिखादे हमको भी कोई ,
खुद को कैसे हैं जिंदगी में ढालना ।
न रो मेरे लाल जिंदगी ने हमें फटकारा
हमें नहीं है तुम्हें फटकारना।
जिंदगी ने छीन लिया हमसे सब-रंग
हमें नहीं करना तुम्हें बेरंग।
हम तुम्हारे जब - तक हैं संग
हमारी ज़िन्दगी से प्रतिपल होती रहेगी ये जंग
क्यों हो गई हमारी जिंदगी बेरंग ?!
क्यों हो गई हमारी जिंदगी बेरंग?!!!!!!

©Sanjeev Suman
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