|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11
।।श्री हरिः।।
7 - शरीर अनित्य है
लोग पागल कहते हैं वैद्यराज चिन्तामणिजी को, यद्यपि सबको यह स्वीकार है कि उनके हाथ में यश है। नाड़ीज्ञान में अद्वितीय हैं और उनके निदान में भूल नहीं हुआ करती। वे जब चिकित्सा करते हैं, मरते को जीवन दे देते हैं; किंतु अपने पागलपन से उन्हें जब अवकाश मिले चिकित्सा करने का।
इतना निपुण चिकित्सक - उसके हाथ में लोहे को सोना करने वाली विद्या थी। वह अपना व्यवसाय किये जाता - तो लक्ष्मी पैर तोड़ उसके घर में बैठने को प्रस्तुत कब नहीं थी; किंतु पता नहीं कहाँ से एक जटाधारी भभूतिया साधु आ मरा इस बेचारे ब्राह्मण के यहाँ। इसे किसे पता क्या-क्या कह गया और पाँच-सात ताड़पत्र दे गया। उन ताड़पत्रों पर क्या लिखा है, कोई कैसे बताये। वैद्यराज प्राणों के साथ उन्हें चिपकाये फिरता है। घर की जमा पूंजी भी इसने फूंक डाली। धुन चढी थी इसे पारद-भस्म बनाने की। ताँबे को सोना बनाना चाहता था। घर आता सोना छोड़कर स्वप्न के सोने के पीछे इसने घर भी फूंक डाला।