कोई घाइल, कोई माइल सा बेसबर हो रहा है। बस एक तुझ ही पर ना, कोई असर हो रहा है। इस क़दर बैठा दिये तूने तेरे इश्क़ के पहरे भी, मेरा दिल भी लोग-जहाँ से बे-ख़बर हो रहा है। फ़िक्र ना सही, ज़िक्र ही कर ले कभी-कभार, हर पल, जैसे ख़ामोशियों का शहर हो रहा है। लगा इल्ज़ाम कोई, गिना मुझे भी तो कमियाँ, बेवजह की दूरी से सब तितर-बितर हो रहा है। गर पसंद नहीं 'धुन' तो फिर संभाल के न रख, यूँ ही पड़े-पड़े हाल, कबाड़ सा उधर हो रहा है। ♥️ Challenge-527 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।