हमें लिखना नहीं आता। हमें पढ़ना नही आता। छोड़ कर अपनो को बीच राह में। तन्हा हमें आगे बढ़ना नही आता। जा बैठे दुश्मन के शामियाने में । चंद खुशियों की खातिर। अब लड़े भी किस से। अपनो से हमें लड़ना नहीं आता। मैं भी उस जन्नत तक पहुँचता यकीनन। पर झूठ को प्यार में घड़ना नही आता। मेरी ये सोच ही मुझे आज तक जमीन पर रखे है। अपनो की लाश की सीढ़ी बना के हमें ऊपर चढना नही आता। ताहिर #हमें लिखना नही आता ।