White कुछ फर्ज थे मेरे, जिन्हें यूं निभाता रहा। खुद को भुलाकर, हर दर्द छुपाता रहा।। आंसुओं की बूंदें, दिल में कहीं दबी रही। दुनिया के सामने, व्यर्थ मुस्कुराता रहा।। रातें भी लंबी थीं, पर नींद कभी आई नहीं। चाहतें भी थीं, पर ज़ाहिर कभी हो पाई नहीं।। हर ख़्वाब अधूरा, दिल में कहीं खलता रहा। फर्ज की आग में, मैं खुद जलता रहा।। के कुछ फर्ज थे मेरे, जिन्हें मैं यूं निभाता रहा।। ©उत्कर्ष शुक्ल UK #sad_shayari @Gudiya*****