दो दौर न चल पाए थे इस तृष्णा के आंगन में, डूबा मदिरालय सारा मतवालों के क्रन्दन में; यमदूत द्वार पर आया ले चलने का परवाना, गिर-गिर टूटे घट-प्याले, बुझ दीप गये सब क्षण में; सब चले किए सिर नीचे ले अरमानो की झोली. गूँजी मदिरालय भर में लो,'चलो,चलो'की बोली !