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और भी हैं शहर में उनकी बात अलग थी। कई चेहरे हैं पह

और भी हैं शहर में
उनकी बात अलग थी।
कई चेहरे हैं पहचान में
उनकी पहचान अलग थी।
सादगी आज भी है शहर में
उनकी शादगी अलग थी।
समझने वाले भी हैं शहर में
उनकी समझ की बात अलग थी।
अक्सर ढूंढता हूं 
हवाओं में फिज़ाओं में
शहर की गलियों में।
कभी ख्यालों में
तो कभी ख्वाबों में
जिनकी हर बात अलग थी।
छुपा के आज भी रखा हूं,
सांसों में, धड़कनों में
दिल के कोने में
लहु के एक एक कतरे में
जिनकी हर बात अलग थी।
और भी हैं शहर में,
उनकी बात अलग थी।
कई नजरें हैं शहर में
उनकी नज़र की बात अलग थी।

©#suman singh rajpoot
  #सुमन