भला हर आदमी तो मसहला होने से डरता है। मुसीबत का कोई भी मामला होने से डरता है। जमाने का चलन देखा तो घबराया बहुत ये दिल, बुरे लोगों में अपना दिल भला होने से डरता है। तमाशा देखते हैं सब कोई कुछ भी नहीं करता शहर में गूंगे बहरों के ज़ुबाँ होने से डरता है। नहीं सजदे करे कोई रहे ताऊम्र ही क़ाफ़िर, ज़माने में अदम कोई ख़ुदा होने से डरता है। उसूलों के लिए जो जान दे कोई नहीं ऐसा, खिलौना है जो मिट्टी का फना होने से डरता है। घुटन सी है फ़िज़ा में हर तरफ है धुँध की चादर, कि टुकड़ा बादलों का भी निहा होने से डरता है। शहर में शोर है कितना हर तरफ कोई हलचल है "पिनाकी" भीड़ में अब लापता होने से डरता है। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #डरता_है