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यह ग़ज़ल जैसी कुछ है भीगे शब्द सुलगते अक्षर देखा

यह ग़ज़ल जैसी कुछ है

भीगे शब्द सुलगते अक्षर देखा है ।
इस चिठ्ठी ने क्या-क्या मंज़र देखा है।
उन आँखों की पीड़ा का अहसास करो
जिसने सावन मे भी पतझर देखा है।
जिनके साथ ज़माना था उनको मैने
बुरे वक़्त मे तनहा अक्सर देखा है।
चढ़ी नदी ने मेरी हिम्मत देखी है
मैने भी दरिया का तेवर देखा है।
मेरे अरमानो को चढ़ते सूरज ने
बड़ी देर तक घूर घूर कर देखा है।
जिस घर की छत से तुम चाँद निरखते हो
मैने उसकी नीव का पत्थर देखा है।
जमुना उपाध्याय 9368558388 #गजल
यह ग़ज़ल जैसी कुछ है

भीगे शब्द सुलगते अक्षर देखा है ।
इस चिठ्ठी ने क्या-क्या मंज़र देखा है।
उन आँखों की पीड़ा का अहसास करो
जिसने सावन मे भी पतझर देखा है।
जिनके साथ ज़माना था उनको मैने
बुरे वक़्त मे तनहा अक्सर देखा है।
चढ़ी नदी ने मेरी हिम्मत देखी है
मैने भी दरिया का तेवर देखा है।
मेरे अरमानो को चढ़ते सूरज ने
बड़ी देर तक घूर घूर कर देखा है।
जिस घर की छत से तुम चाँद निरखते हो
मैने उसकी नीव का पत्थर देखा है।
जमुना उपाध्याय 9368558388 #गजल