Nojoto: Largest Storytelling Platform

कैसे वर मांगूं।। कैसे मैं दैविक वर मांगूं। कैसे क

कैसे वर मांगूं।।

कैसे मैं दैविक वर मांगूं।
कैसे कष्टों से उबर मांगूं।
जीवन मांगूं की मृत्यु आस,
एक पल मांगूं या उमर मांगूं।

कब हुआ भक्त कब भक्ति की,
पूजा तो रही आसक्ति की।
किस मुख शब्द उच्चारुं मैं,
किस भाव ईश पुकारूँ मैं।
कालिख पूता जो मन मे था,
कब धीर भाव आसन में था।
कब श्लोक मन्त्र या स्तोत्र पढ़ा,
बस स्वार्थ लोक का स्रोत गढ़ा।
उनका वंदन अभिनन्दन क्या,
भाल तिलक और चन्दन क्या।
मूढ़ बना जो फिरता है,
पल पल घुटनों पे गिरता है।
ईश सुने उसकी पुकार क्यूँ,
शब्दहीन उसकी हुंकार ज्यूँ।
माथ पटकता भावहीन हो,
मानो बिनजल वो मीन हो।
तलवा जर्जर और घायल था,
कब मन भक्ति का कायल था।
तपाधीन उठ आये महेश भी,
वर में भी छुपा रहा द्वेष ही।
मंत्रोच्चारण सब जोग जाप,
उपजे जब छाया संताप।
लाभ हानी का मोल भाव था,
पापोनमुलन का तो आभाव था।
भजन रहा छन्दित और स्वरबद्ध,
हुआ नहीं मैं और मेरा का वध।
सारहीन हर एक प्रलाप था,
वर में भी छुपा एक शाप था।
ईश्वर क्या सुनता मेरी,
सब मैं प्रारबधों से डर मांगूं।
कैसे मैं दैविक वर मांगूं।
कैसे कष्टों से उबर मांगूं।
जीवन मांगूं की मृत्यु आस,
एक पल मांगूं या उमर मांगूं।

©रजनीश "स्वछंद" कैसे वर मांगूं।।

कैसे मैं दैविक वर मांगूं।
कैसे कष्टों से उबर मांगूं।
जीवन मांगूं की मृत्यु आस,
एक पल मांगूं या उमर मांगूं।

कब हुआ भक्त कब भक्ति की,
कैसे वर मांगूं।।

कैसे मैं दैविक वर मांगूं।
कैसे कष्टों से उबर मांगूं।
जीवन मांगूं की मृत्यु आस,
एक पल मांगूं या उमर मांगूं।

कब हुआ भक्त कब भक्ति की,
पूजा तो रही आसक्ति की।
किस मुख शब्द उच्चारुं मैं,
किस भाव ईश पुकारूँ मैं।
कालिख पूता जो मन मे था,
कब धीर भाव आसन में था।
कब श्लोक मन्त्र या स्तोत्र पढ़ा,
बस स्वार्थ लोक का स्रोत गढ़ा।
उनका वंदन अभिनन्दन क्या,
भाल तिलक और चन्दन क्या।
मूढ़ बना जो फिरता है,
पल पल घुटनों पे गिरता है।
ईश सुने उसकी पुकार क्यूँ,
शब्दहीन उसकी हुंकार ज्यूँ।
माथ पटकता भावहीन हो,
मानो बिनजल वो मीन हो।
तलवा जर्जर और घायल था,
कब मन भक्ति का कायल था।
तपाधीन उठ आये महेश भी,
वर में भी छुपा रहा द्वेष ही।
मंत्रोच्चारण सब जोग जाप,
उपजे जब छाया संताप।
लाभ हानी का मोल भाव था,
पापोनमुलन का तो आभाव था।
भजन रहा छन्दित और स्वरबद्ध,
हुआ नहीं मैं और मेरा का वध।
सारहीन हर एक प्रलाप था,
वर में भी छुपा एक शाप था।
ईश्वर क्या सुनता मेरी,
सब मैं प्रारबधों से डर मांगूं।
कैसे मैं दैविक वर मांगूं।
कैसे कष्टों से उबर मांगूं।
जीवन मांगूं की मृत्यु आस,
एक पल मांगूं या उमर मांगूं।

©रजनीश "स्वछंद" कैसे वर मांगूं।।

कैसे मैं दैविक वर मांगूं।
कैसे कष्टों से उबर मांगूं।
जीवन मांगूं की मृत्यु आस,
एक पल मांगूं या उमर मांगूं।

कब हुआ भक्त कब भक्ति की,