जिक्र ना करूँ बे-निशाँ दर्द का तो अच्छा है, अब तुझ से खफ़ा ना रहूँ तो अच्छा है, यूँ तो परदे है इस क़ायनात में कई सारे, अपने चेहरे से नक़ाब ना हटाऊँ तो अच्छा है, के गुजरी है राते मायूसी के शामयने मिरी, अब चेहरे से मुस्कान ना छिपाऊँ तो अच्छा है, एक ख़ामोशी छुपी है तिरे गुमसुम मन मे कहीं, ज़ेहनी शौर से जुदा हो जाओ तो अच्छा है, सुना है तिरे शहर की गलियों में भीड़ बहुत है, मैं फिर तुझ से रूबरू ना हो जाऊँ तो अच्छा है, ख़ुद को खो दिया दौडते इस ज़हां की भीड़ में, के मुसाफ़िर अब घर लौट आओ तो अच्छा है, यूँ तो आता नहीं मुझें लिखने का हुनर कुमार, तिरी यादों के सहारे में लिख लूँ तो अच्छा है, — Kumar✍️ ©Kumar #SAD #गजल_ए_कुमार #nojotowriters #nojotohindi अंकित सारस्वत आशुतोष यादव indira Priyanjali ram singh yadav Shivinya