तुमने कहा था... नहीं, पूछा था! मेरी पसंद नापसंद नाहक याद दिलाया था ख्वाहिशों का रूठा बचपन पल्लवित होने लगा जब तरूमन किसलय और लाल लाल कोंपल करने लगी वल्लरियां जब हलचल याद आने लगा तुम्हें व्यापार घर - बार आत्मीय सा परिवार वो सूखे मन मौसम में वो पौध बचपन की तुम्हें उसकी सुध कहां थी वह क्षणिक एक चेतना थी रागमय जीवन उमंगित एक निमिष की कल्पना थी आह! निष्ठुर समय! किन्तु वो कितनी कोमल व्यंजना थी काव्य का भावार्थ जीवन तथ्य किसका ये समय को छोड़ निर्मम सत्य किसका कौतूहल! इतना ही इसका स्फुरण था व्यर्थ ही शायद सहज ये अंकुरण था नीम! पीपल! या बाँस! यों तो था नहीं ये मौसम की नियत सी शाख कोई था नहीं ये फिर भी! मन्दार की तरह अकुलाता फूलता सा ठूठ होने से ठिठकता! पैर पटकता न जाने किन स्मृतियों की आश लिए विकसता जाता देखा होगा तुमने राहों पर राह तकता हवा के संग न जाने क्या दोहराता नहीं मांगता कोई खाद - पानी अनायास मन की साखी बढ़ता जाता तुमने कहा था... #तुमनेकहाथा #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi#toyou#yqlove#yqchildhood#yqeloquence