ना पूछ मेरी जान कि तेरी याद कब कब आती है। जब कोई नहीं होता है पास हमारे तब आती है। उम्मीद मिट सी जाती है दिन के ढलते ढलते दिल सोचता रह जाता है तू अब आती है अब आती है। वो एक शब जब तू गई शब-ए-फ़िराक नहीं गई शब-ए-वस्ल नहीं आती जबकि रोज शब आती है। शर्म से मर जाते हैं राम रहीम मरियम सब के सब जब बात बात पे सियासत लेके मज़हब आती है। ख़ल्वतों में दिल का रोना बेदिली की मिसाल है बेदिली ही मुहब्बत है बेदिली न बेसबब आती है। एक लहर सी उठती है सर से पाँव तक बदन में खुशबू खुशबू हो जाता हूँ तू मेरे घर जब आती है। ग़ज़ल। शब - night शब-ए-फ़िराक - night of separation (from lover) शब-ए-वस्ल - night of meeting (with lover) मरियम - mother of Jesus Christ सियासत - politics मज़हब - religion ख़ल्वत - privacy , loneliness