ज़िंदगी बहुत कुछ है.. इक कहानी.. भावनाओं में बहक जायेंगे.. समझाया करो इन्हें... कुछ विस्मृत सी होती स्मृतियों को एक शब्द देने का प्रयास.. कृपया अनुशीर्षक में पढ़े.. कहानी कहूं या हकीकत ये पाठकों पर निर्भर करेगा वे जो समझले.. गर्मियों की छुट्टियां हुई थी.. फोजियों के बच्चों का काफी इंतजार रहता था इन छुट्टियों का.. साल में दो ही बार कहीं सपरिवार पिता जी निकलते थे.. पर लंबी छुट्टी ले.. कुल २ माह की.. अकसर गांव ही जाना होता था.. हम सब जवानी के दहलीज पर कदम रख रहे थे.. चेहरे पर हल्की हल्की दाढ़ी.. मूछों के नाम पर होठों ऊपर नाम मात्र के कुछ बाल.. लड़कियां भी जो हम उम्र थी गांव में जिनके साथ कभी बे हिचक खेला करते थे हम... कोई पाबंदियां ना होती थी.. उनके