ना जाने ये खामोशी, क्या कयामत लायेगी? बनकर कोई याद पुरानी, गुल कोई नया खिलयेगी। बेफ़िक्री की ये आदत तेरी, काम कभी ना आयेगी। गर मैं भी खामोश हुआ तो, "पगली" हँस तू भी ना पायेगी। ना जाने ये खामोशी, क्या कयामत लायेगी? "ना जाने ये खामोशी"