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कैद होने लगे हैं बचपन से आजाद होते हुए बर्बादी की

कैद होने लगे हैं बचपन से आजाद होते हुए
 बर्बादी की तरफ चल दिए आबाद होते हुए, 
मैदानों में बीती शाम में याद नहीं आती
 मदद गैरों से मांगते हैं खुदा से फरियाद होते हुए!
उम्र की गिनती जरा बढ़ने क्या लगी
 अंदाज गैर से काम करते हैं खुद का अंदाज होते हुए  वो भागकर मां की गोद में सोना महसूस होता है
 नींद अच्छी नहीं आती बिस्तर साथ होते हुए 
वह मदरसे की तख्ती का रंगना याद आता है 
अनपढ़ सा महसूस करते हैं किताबे साथ होते हुए वह मांजे से कटी उंगलियां  वक्तों से सलामत है
पतंगबाजी का शोक खो गया है पतंगे साथ होते हुए
 दस्तूर कुदरत है यही होना मुकद्दस है
 हम खुद से बिछड़ने लगते हैं खुद के साथ होते हैं कुछ शेर छूट गए हैं .... आज ही नहीं पाए इसमें.
कैद होने लगे हैं बचपन से आजाद होते हुए
 बर्बादी की तरफ चल दिए आबाद होते हुए, 
मैदानों में बीती शाम में याद नहीं आती
 मदद गैरों से मांगते हैं खुदा से फरियाद होते हुए!
उम्र की गिनती जरा बढ़ने क्या लगी
 अंदाज गैर से काम करते हैं खुद का अंदाज होते हुए  वो भागकर मां की गोद में सोना महसूस होता है
 नींद अच्छी नहीं आती बिस्तर साथ होते हुए 
वह मदरसे की तख्ती का रंगना याद आता है 
अनपढ़ सा महसूस करते हैं किताबे साथ होते हुए वह मांजे से कटी उंगलियां  वक्तों से सलामत है
पतंगबाजी का शोक खो गया है पतंगे साथ होते हुए
 दस्तूर कुदरत है यही होना मुकद्दस है
 हम खुद से बिछड़ने लगते हैं खुद के साथ होते हैं कुछ शेर छूट गए हैं .... आज ही नहीं पाए इसमें.
asifchauhan3177

Asif shah

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