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इन दीवारों पे "बेफिक्र" उसका नाम लिखा करता मोहब्बत

इन दीवारों पे "बेफिक्र" उसका नाम लिखा करता
मोहब्बत के आईने में, उसकी तस्वीर देखा करता
पता नही था, चढ़े दूजा रंग दीवारों पे
टूटे आईने से यादों को जोड़ा करता

इन दीवारों पे "बेफिक्र" उसका नाम लिखा करता...

रह गया बेदर्द दिल का सवाल, जवाब ना मिला
वो अमीरों का वासिंदा था, कही दूर चला गया
समझ मिली कुछ वक्त लगा
मैं चल पड़ा हूं अपनी राह, उस बेपरवाह को भूल गया

फिर क्या हुआ...

मोहब्बत के ठिकानों में, अब कोई नहीं रहता 
बिछड़न में रोया था दिल, अब नहीं रोता
उनके बिना भी जिंदा है दिल
मोहब्बत के मल्हार, अब कोई नहीं गाता

मोहब्बत के ठिकानों में अब कोई नहीं रहता ...

यह इश्क बाजी एक जालसाजी है 
झूठे चेहरे और शब्दों को गुलामी है
पता लगता नहीं जब तक  दिल नहीं टूटे
बिना स्याही कोरे पन्ने पे लिखी, बस कहानी है

ये इश्क बाजी नही एक जालसाजी है..

©गणेश चौधरी "बेफिक्र"
  नाम लिखा करता....
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