#DaughtersDay सुनो बेटियां भी मचलने लगी है । कि छूने गगन को तडपने लगी है ।। इन्हे भी घरो से जरा तुम निकालो । की परियाँ तुम्हारी चलने लगी है ।। न बाँधों इन्हें घर कि दहलीज तक तुम । बेटियां तो गगन में उडने लगी है ।। यका यक हमारी नज़र जो पड़ी तो । देखा ये शरहद पे लडने लगी है ।। दिखे वर न कोई करुँ हाँथ पीले । हिना भी इसे अब महकने लगी है ।। परिंदा न समझा कभी बेटियों को । तभी तो सुमन ये खिलने लगी है ।। सिखाओ करे बेटियां भी हिफाजत । घरो में निकल कर चमकने लगी है ।। ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सुनो बेटियां भी मचलने लगी है । कि छूने गगन को तडपने लगी है ।। इन्हे भी घरो से जरा तुम निकालो । की परियाँ तुम्हारी चलने लगी है ।। न बाँधों इन्हें घर कि दहलीज तक तुम । बेटियां तो गगन में उडने लगी है ।।