ये चादर पर सिलवटें हैं मेरी करवटों की । जैसे हवाओं के शिकन हैं चोटियों पर पर्वतों की । आप कहेंगे ये क्या बात हुई ? हमारी बाहों की ताकत हवाओं से नाप दी ? में कहूँगा खुद को पर्वत समझो । हर ख्वाब को हवाओं सा ज़रिया समझो । फर्क है एक बात का बस, वो पर्वत शिकन अपने माथे पर रख अडिग रहता है । हमारा अक्स ख्वाबों के निशाँ पीछे छोड़ता है । एक थमा रहता है । एक बढ़ता, बहता है । सिलवटें ये चादर पर सिलवटें हैं मेरी करवटों की । जैसे हवाओं के शिकन हैं चोटियों पर पर्वतों की । आप कहेंगे ये क्या बात हुई ? हमारी बाहों की ताकत