दुनिया गोल नहीं है ( कविता अनुशीर्षक मे पढ़े ) दुनिया गोल नहीं है गोल होती तो हम लौट कर वहीं आ जाते जहां से चलना शुरू किया सिर्फ उतना देख पाने में सक्षम है जो सामने घटित हो रहा है जो सामने है उसे ही सच मान लेते हैं