औरत होना आसां कहां ? पुरुष के शरीर का तो कुछ ही कतरा निकलता है , लेकिन एक औरत को कितनी तकलीफों से होकर गुजारना पड़ता है , हर महीने की मासिक (period) समयानुसार आते हों , जिसमें उनको कमर और पैरों के दर्द से गुजरना पड़ता है । (मासिक (period) - जी हां वही मासिक चक्र जिसको कुदरत का एक नियम माना गया है , जिसमें आज भी कई जगह पर औरतों को इस दौरान सही नजर से नहीं देखा जाता , किचन में नहीं जाना , अपनी मर्जी का खाना ना खाने दिया जाना , और उनकी देख - भाल ना करना , और उस समय उनके पति को भी उनसे कोई लगाव नहीं रह जाता ।) शरीर में हो रहे लगातार बदलाव , वजन बढ़ता है , लेकिन तब भी एक औरत मुस्कुराती रहती है पैरों में सूजन कोई ना कोई समस्या साथ लिए हुए वह हर - पल सबकी खुशियों का ध्यान रखती है , नए मेहमान के आने की उम्मीद में अपना दर्द भी भूल जाती है कितनी रातें जाग कर गुजारती है कितने सपने बुनती है अपने अंदर समाये हुए उस अनदेखे नन्ही सी जान की दिन बढ़ते हैं उसके लिए सोना उठना - बैठना बहुत कठिन हो जाता है लेकिन वह सब कुछ सह जाती है खुद अपने दर्द को छुपाकर अपनों के लिए उठ कर काम करती है , उनकी हर चीज का ख्याल रखती है धीरे - धीरे वह घड़ी आ जाती है जब हजार हड्डियों के टूटने के बराबर के दर्द को सह कर भी वह एक छोटी सी जान को जन्म देती है उसके बाद उसका जीवन आसान कहां ? रात रात भर जागकर वह बच्चे को बहलाती है सुलाती है , खुद थोड़ा खाकर भी अपने आंचल से अपना दूध बच्चे को पिलाती है , कई बार तो दूध सही से ना आने पर कितनी दवाई और कड़वे काढ़े का सेवन करती है , बच्चे के साथ बच्चा बनना, 2 साल तक उनके पीछे - पीछे भागना फिर भी गोद में लेकर जान वारती है औरत दो शब्द प्यार और इज्जत के चाहती हैं ये अपना आत्म - सम्मान चाहती हैं बस यह । सच में औरत होना आसान कहां ?? Roli Mayank Verma ©Roli Mayank Verma #Rose #Nozoto #rolimayankverma