हार का तोड़ सुनाई दे रहा हमको ; समन्दर का शोर लहरे बढ़ रही बड़ी तेजी से किनारें की ओर वक्त रहते ही ; गर गये , हम सम्भल तो देगें जीत से ; हार को , पीछे छोड़ कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद हार का तोड़.....कीर्तिप्रद