मेरी मुरझाकर मायूस पड़ी जिन्दगी में, तुम खुशियों की बहार बन छा गए सुगंधित गुल खिलाकर गुलशन में, मेरे गंधहीन जीवन को महका गए तुमने वात्सल्य वर्षा कर , मेरे मस्तिष्क की मृत मरुभूमि को हरित किया तुमने हृदय में प्रेम- बीज बोकर, स्नेहिल विचित्र विश्वास अंकुरित किया तुम सुहृद समपूर्ण सान्निध्य देकर, सालों से सुप्त अनुदित अनुराग जगा गए तुम नज़रों में नजर मिलाकर, मेरे रंगहीन जग-जीवन को जगमगा गए #dr_naveen_prajapati#शून्य_से_शून्य_तक #कवि_कुछ_भी_कलमबद्ध_कर_सकता_है..