Nojoto: Largest Storytelling Platform

इस पोस्ट की सच्चाई, मैने कल






















 इस पोस्ट की सच्चाई,
मैने कल शाम ये पोस्ट लिखी थी,आप में से कुछ को लगा कि मुझे क्या हुआ है....हां ये सच हैं कि मन बहुत व्याकुल था...पोस्ट डिलीट की मन माना नहीं सोचा इस पोस्ट की सच्चाई कड़वी है मगर बताना बनता है....
विनीता ( बदला हुआ नाम) जब ब्याह कर 2018में दिल्ली आई तो हमारी मुलाकात हुई, विनीता की मां मेरी सीनियर हुई करती थी,उसने विनीता का हाथ मुझे सौंपते अपनी बेटी को बोला था, ये ही तेरे मामा हैं और तुम्हारे गार्जियन भी, 2020 तक तो विनीता के बच्चा नहीं होने से कुछ विशेष टीका टिप्पणी नहीं हुई 2020 दिसंबर में पहली बार उसे इस विकट स्थिति का सामना करना पड़ा की ससुराल से ताने सुनाई पड़ने लगे।
2021 मार्च अन्त में जब कोरोना का प्रकोप बड़ रहा था, विनिता की तकलीफ़ बड़ने लगी, Dr. Shikha के पास ले गया, उन दिनों मेरा भी कैंसर ट्रीटमेंट शुरू ही हुआ था, टेस्ट कराए उसके तो ओवेरियन ट्यूब में जो मिला उससे चिंता बड़ी, स्कैन हुआ तो पता चला कि कैंसर vital organs ki तरफ़ बड़ चुका है, दिसंबर तक ट्रीटमेंट चला, विनीता को ले कर हर कोइ परेशान था, इस साल अप्रैल आते आते विनीता की तबियत बिगड़ी और सुधारने की बजाय बिगड़ती चली गई।
मुझसे बातें करते करते वो ये समझ चुकी थी की अब उसका ठीक होना असम्भव है.... और पता नहीं क्या उसके दिमाग में चल रहा था की कुछ दिन पहले उसने आत्महत्या कर ली।
मन को गहरी ठेस पहुंची, इतनी कि लिखे बिन रहा नहीं गया, उसी के मन के भावों को शब्दों में ढाल कर अपने मन से बाहर निकलने की कोशिश में ये सब लिखा जिसे पढ़ कर आपको लगा किउझे ये क्या हो गया है, इतना नकारात्मक कैसे हो गया में, सोचो आप किसी को जीने के लिए प्रेरित करते हो ये जानते हुए भी की उसकी मृत्य निकट है...और वो स्वयं को हो मार डाले 
पीड़ा तो होती है जा मन को...की नहीं?
दीप कुलभूषण





















 इस पोस्ट की सच्चाई,
मैने कल शाम ये पोस्ट लिखी थी,आप में से कुछ को लगा कि मुझे क्या हुआ है....हां ये सच हैं कि मन बहुत व्याकुल था...पोस्ट डिलीट की मन माना नहीं सोचा इस पोस्ट की सच्चाई कड़वी है मगर बताना बनता है....
विनीता ( बदला हुआ नाम) जब ब्याह कर 2018में दिल्ली आई तो हमारी मुलाकात हुई, विनीता की मां मेरी सीनियर हुई करती थी,उसने विनीता का हाथ मुझे सौंपते अपनी बेटी को बोला था, ये ही तेरे मामा हैं और तुम्हारे गार्जियन भी, 2020 तक तो विनीता के बच्चा नहीं होने से कुछ विशेष टीका टिप्पणी नहीं हुई 2020 दिसंबर में पहली बार उसे इस विकट स्थिति का सामना करना पड़ा की ससुराल से ताने सुनाई पड़ने लगे।
2021 मार्च अन्त में जब कोरोना का प्रकोप बड़ रहा था, विनिता की तकलीफ़ बड़ने लगी, Dr. Shikha के पास ले गया, उन दिनों मेरा भी कैंसर ट्रीटमेंट शुरू ही हुआ था, टेस्ट कराए उसके तो ओवेरियन ट्यूब में जो मिला उससे चिंता बड़ी, स्कैन हुआ तो पता चला कि कैंसर vital organs ki तरफ़ बड़ चुका है, दिसंबर तक ट्रीटमेंट चला, विनीता को ले कर हर कोइ परेशान था, इस साल अप्रैल आते आते विनीता की तबियत बिगड़ी और सुधारने की बजाय बिगड़ती चली गई।
मुझसे बातें करते करते वो ये समझ चुकी थी की अब उसका ठीक होना असम्भव है.... और पता नहीं क्या उसके दिमाग में चल रहा था की कुछ दिन पहले उसने आत्महत्या कर ली।
मन को गहरी ठेस पहुंची, इतनी कि लिखे बिन रहा नहीं गया, उसी के मन के भावों को शब्दों में ढाल कर अपने मन से बाहर निकलने की कोशिश में ये सब लिखा जिसे पढ़ कर आपको लगा किउझे ये क्या हो गया है, इतना नकारात्मक कैसे हो गया में, सोचो आप किसी को जीने के लिए प्रेरित करते हो ये जानते हुए भी की उसकी मृत्य निकट है...और वो स्वयं को हो मार डाले 
पीड़ा तो होती है जा मन को...की नहीं?
दीप कुलभूषण