#OpenPoetry एक सिक्के की तलाश में ना जाने, कब से चक्कर लगा रहा है वो, सिग्नल पर बत्ती देख गाड़ियों के, आगे पीछे ठोकरें खा रहा है वो, इस ज़माने में एक सिक्के की उम्मीद, लोगों से लगाये बैठा हुआ है वो... एक सिक्का जिसे भीख समझते है लोग, उसे भी देने में कतरा रहे है लोग, नज़रे चुराकर तो मज़बूरी बता कर, ये सब जानते हुए भी निरंतर प्रयास कर रहा है वो... जिस नन्हें हाँथों मे होना चाहिए, खिलौने का डब्बा उसके हाँथों में, देखकर आया हूँ सिक्कों का डब्बा... इस कड़ी धूप में एक सिक्के की आस में, ना जाने कब से भटक रहा है वो, उसे तो पैरों पर चप्पल ना होने का भी ध्यान नहीं, छाले पड़ गए है फिर भी रहा है वो घूम, पेट की भूख के लिए सब दर्द सह रहा हैं वो... पर किसी ने मज़बूरी ना समझी, ना ही पूछी किसी ने पूछी वज़ह, बस एक रोटी के लिए, हर चौखट पर हाँथ फैला रहा है वो... एक सिक्के की तलाश में ना जाने कब से भटक रहा है वो... Goutam Singh Chauhan #OpenPoetry #nojotohindi #shayar #storytelling #poetry #भीख #bachpankiyaadein #nojotoofficial #writes #goutamsingh Sanjay Sanju Panwar