अपने शहर गए अरसा बीत चुका है, एक ठंड सी सांस में आज भी वो दर्द छुपा है, कुछ बेवक़्त सी बात लगती है, थोड़ा अलग-थलग सा सबसे रखती है, इतनी दूर आ गया हूँ, खुद से भी बात नही करता हूँ, हाँ जब बारिश होती है तो सबसे छुप कर कागज़ की एक नाव बना लेता हुँ, पर सुर्ख पड़े अपनत्व पर कुछ घाव और बढ़ जाते हैं, मुझे मिलना है खुद से एक दिन यह पुकार दोहराते हैं, अब इस दौड़ में थोड़ी देर कहीं रुक जाता हूँ, फिर इस सड़क पे अनगिनत रौशनियों का हिस्सा बन जाता हूँ। #छुटा शहर