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हरीन बनी क्या ढूँढ रही है, कस्तूरी हर राह डगर रुक

हरीन बनी क्या ढूँढ रही है, कस्तूरी हर राह डगर
रुक बैठ ज़रा तू साँस तो ले 
और झाँक ज़रा मन के अंदर

कुछ सूंघ ज़रा तू खुद को भी
कुछ अपनी भी तारीफ तू कर
और ना कोई ना कह पाएगा
खुद से अगर हामी तू भर

हरीन बनी क्या ढूँढ रही है, कस्तूरी हर राह डगर रुक बैठ ज़रा तू साँस तो ले और झाँक ज़रा मन के अंदर कुछ सूंघ ज़रा तू खुद को भी कुछ अपनी भी तारीफ तू कर और ना कोई ना कह पाएगा खुद से अगर हामी तू भर #PoetryOnline #motivationamonday #bholliya #भोलिया

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