जिस पावन जल प्रवाह में विसर्जित की थी #स्मृतियाँ अपनी वहीं उसी झील किनारे फूटे हैं कुछ सुगंधित पुष्प के कपोल जो अनायास ही खींच लाते है मुझे पुनःइसी स्थान पर मैं देखती हूँ प्रतिदिन इन स्मृतियों कोविस्तृत होते मैंने तों मात्र मुट्ठी भर ही प्रवाहित की थी किंतु साथ में डाली थी अपने प्रेम की भस्म कदाचित आत्मिक प्रेम अमर होता हैं तभी तो यह स्मृतियाँ नवजीवन के साथ पुनः मेरे जीवन में प्रवेश कर लहलहा उठी हैं ये उतनी ही तेजी से बढ़ रही हैं जैसे अमर लताएं मैं अब इन्हें कितना भी काटू, छाँटू, तोड़ दूँ किन्तु ये निरंतर तेजी से बढ़ते हुए मुझसे लिपट ही जाएंगी और सदैव मेरे अंत्स में विराजित रहेंगी स्मृतीयां बन कर.. ©Manvi Singh Manu