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मैं एक फूल सा कि अब खिलता नही मिलता हूं मैं सब से

मैं एक फूल सा
कि अब खिलता नही 
मिलता हूं मैं सब से महफिल में 
मगर खुद से अब मैं मिलता नही 
इतना समाया है दर्द अंदर मेरे 
कि जगह से अपने हिलता नही 
मुस्कुराता रहता हूं एक झूठी मुस्कान के साथ 
मगर खुल कर अब मैं हस्ता नही
 ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1108 #collabwithकोराकाग़ज़

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊

♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा।

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।
मैं एक फूल सा
कि अब खिलता नही 
मिलता हूं मैं सब से महफिल में 
मगर खुद से अब मैं मिलता नही 
इतना समाया है दर्द अंदर मेरे 
कि जगह से अपने हिलता नही 
मुस्कुराता रहता हूं एक झूठी मुस्कान के साथ 
मगर खुल कर अब मैं हस्ता नही
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R Dubey

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