मेरे बदनाम होने को चर्चा नहीं बनाता है मुझे बुरा बोल ख़ुद को अच्छा नहीं बनाता है आरज़ू तो मेरी भी उसी का होने की है हर किसी को मग़र वो "अपना" नहीं बनाता है गली से उसकी लोग तड़पते हैं गुज़र कर वो बस प्यास बनाता है "दरया"नहीं बनाता है मुझसे अब अक्सर कहा करते हैं ज़माने वाले तू क्यों ख़ुद को सब के "जैसा" नहीं बनाता है हाथ तो कुछ भी नहीं एक फ़कीर के लेकिन ख़ुदा अमीर सबको "मुझ सा" नहीं बनाता है #आदत