"मेरा बचपन" मेरा बचपन जो हँस के गुजर रहा था वो मेरी माँ के आँचल में सवर रहा था.... हर रोज़ मेरी माँ मुझे निहारा करती थी, में भी उसे माँ कहकर पुकारा करती थी, शुभ प्रभात को ना सही पर हर रोज़ शाम मेरे पापा की गोंद में ही गुजारा करती थी, सुबह माँ मुझे उठकर नहलाया करती थी उनके प्यारे हाथों से सहलाया करती थी जब में अकेले में रोया करती तो मेरीे माँ खिलौनों से मेरा दिल बहलाया करती थी अब ये वक़्त धीरे धीरे सुधर रहा था मेरा बचपन जो हँस के गुजर रहा था " मेरी दंतुरित मुस्कान से आंगन हिल गया एक कली जो अब फूल बनकर खिल गया उमीद लगाकर बैठे थे सब उनका दिल गया फिर पापा को एक बेटी का प्यार मिल गया अब में किसी कवि की प्रेरणा होकर हँस लुंगी कोई भी गम हो मुझे पत्थर बनकर सह लुंगी अब ना कोई मेरे वादे से मुखर रहा था मेरा बचपन जो हँस के गुजर रहा था "वो मेरी माँ के आँचल में सवर रहा था... "मेरा बचपन जो हँस के गुजर रहा था ..