विचारों की कशमकश में जुंझ रही थी मैं, भूत, वर्तमान और भविष्य में उलझ कर , खुद से कुछ पूछ रही थी मैं। जो बीत गया , वो मेरा नही था, जो अब है, क्या वो मेरा होगा? भविष्य की खिड़कियों से झांक कर, खुद से कुछ पूछ रही थी मैं। विचारों की कशमकश में जुंझ रही थी मैं। परिंदे-सी चाह ले उड़ जाने की इच्छा, नीले आकाश की अनंत गहराईयों में खो जाने की इच्छा, दिल में उठी तरंगों से कुछ कह रही थी मैं। विचारों की कशमकश में जुंझ रही थी मैं। मेरा "मैं" मुझसे दूर हो जाये, उन्मुक्त हो मेरा साथ छोड़ जाये, उस परम सुख की अनुभूति हो, जिस को रूह में ढूंढ रही थी मैं। विचारों की कशमकश में जुंझ रही थी मैं। #Vichar#mein# kashmakash# vartman