#OpenPoetry ईद मुबारक कैसे तुम ये बधाई इतनी आसानी से दे देते हो, जब एक मासूम बेजुबान, जिसे तुमने पाला पोसा खिलाया पिलाया और एक ही दिन में उसे कसाई को दे देते हो। वो नहीं मांगता किसी से भी कुर्बानी या बली, फिर वो चाहे कोई भी हो अमर, एंथनी या अली। ईश्वर या अल्लाह ने, पैदा करने का और किसी को मारने का हक खुद को दिया है, फिर कौन है यह लोग जिन्होंने यह ठेका खुद से लिया है। अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़ी हुई इन कुरीतियों को क्यों नहीं अपने जीवन से बाहर करते हो, अनपढ़ का तो चलो एक बार मान भी ले पढ़े-लिखे लोग भी क्यों अपने विवेक को ज़ायर करते हो। जब चलाते हो नशतर किसी बेजुबान की गर्दन पर रक्त रंजित हो जाता है सारा पर्व, चार लोग मिलकर जकड़ लेते हो उसको, ऐसी बहादुरी करने पर शायद ही होता हो किसी सभ्य इंसान को गर्व। त्यौहार का अर्थ होता है खुशियां प्रेम और प्रफुल्लता, लेकिन यहां है सिर्फ कष्ट हत्या और निर्ममता। अल्लाह ने तो मांगी थी इब्राहिम से उसकी ही संतान, अगर उसको इतना ही मानते हो तो क्या कर पाओगे अपनी औलाद को कुर्बान। ईश्वर या अल्लाह कोई नहीं चाहता कि कोई हो उसके नाम पर कुर्बान, वो चाहते हैं तो सिर्फ ये कि हम करें इन कुप्रथाओं का बलिदान। इसलिए इन कुरीतियों की बेड़ियां तोड़ो हिंदू हो या मुसलमान, और मजहब से ऊपर उठकर बनो एक मुकम्मल इंसान। ........... नवोदित 'हिंदू' #navodit