रस्मों रिवाज़ की बेड़ियाँ दिखावे की सस्कृति हौले-हौले ज्यों-ज्यों पनपती जा रही रस्मों रिवाज़ की शक्ल लिए समाज की बेड़ियाँ बनती जा रही प्रगति में बाधा बनकर जो फिजूल मुश्किलें बढ़ा रही चकाचौंध और ताम झाम में नाहक संपत्ति लुटा रही कर्ज के बोझ में डूब रही पर फर्ज समझ ये निभा रही रस्मों रिवाज़ के बोझ तले अहसास भी दब से जाते हैं लोग हैं की जोर शोर से फिर भी इन्हें निभाते हैं कैसा होगा समाधान जब समाज ही पूरा सारा इस व्याधि से ग्रसित है ऐसा ही यदि हाल रहा तो फिर बर्बादी निश्चित है! द्वारा:-RNS. #रस्मों रिवाज़ की बेड़ियाँ!🤔