खामोश होकर मै तुम्हारी, ख़ामोशी को समझ रहा हूँ । हाँ मै जानता हूँ कि, किन रिश्तों की डोरी मे उलझ रहा हूँ । हा मै बस इस वक़्त को ठहराये हुए हूँ । खुद ही मै खुद को समझाये हुए हूँ। हाँ मै बेगानों के तमाशे और, अपनों के आँसुओ मे सिसक रहा हूँ । शायद मै अब दुनिआ की, नज़रों मे कसक रहा हूँ । उबड़ खावड़ रास्तो के, पत्थरो पर मै भटक रहा हूँ, जाने कितनो के गले मे, मै हड्डी सा अटक रहा हूँ । ©Prem kumar gautam #WalkingInWoods AK Sharma Astha gangwar ©